Akshaya Tritiya 2023 - When, Where, and Why It is Celebrated

Akshay Tritiya

अक्षय तृतीया 2023: अक्षय तृतीया जिसे राजस्थान में "आखा तीज" के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया हिंदी महीने के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि होती है। अक्षय तृतीया को एक स्वयंसिद्ध मुहूर्त का दिन भी माना जाता हैं तथा अक्षय तृतीया को सतयुग के बाद त्रेता युग का आरंभिक दिन भी माना गया हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया के  दिन अगर कोई मांगलिक कार्य करना है तो  इस दिन बिना पंचांग में मुहूर्त देखे कोई भी मांगलिक कार्य किया जाना शुभ होता हैं जैसे - शुभ विवाह, नूतन ग्रह - प्रवेश, घर या भूखंड खरीदना या बनवाना, नए वस्त्र और आभूषण खरीदना, नए वाहन खरीदना , और किसी भी नए कार्य की शुरुआत करना इत्यादि कई ऐसे कार्य हैं जिसे इस दिन बिना मुहूर्त देखे ही संपन्न कर सकते हैं।

इसके अलावा भारतीय परंपरा के अनुसार वैशाख मास में दान पुण्य करना तथा पितृ - देवों की पूजा अर्चना करना तथा पक्षियों को दाना - पानी देना आदि कार्य करने से पुण्य प्राप्त होता हैं। इस मास का सबसे खास दिन "अक्षय तृतीया”, इस दिन दान पुण्य करना तथा ब्राह्मणो को भोजन कराना, तीर्थ स्नान करना, कन्याओं को भोजन कराना, तिलो से पितरों का तर्पण करना, पूर्वजो के लिए जागरण करना, तुलसी विवाह करना आदि कई ऐसे सत्कार्य है जिन्हें इस दिन करने से पाप नष्ट होते तथा पुण्य प्राप्त होता हैं।

 

अक्षय तृतीया का मतलब क्या होता है ?

अक्षय तृतीया यह एक संस्कृत शब्द है जिसमे अक्षय शब्द से तात्पर्य हैं - जो कभी कम ना हो (सुख और समृद्धि) और तृतीया से तात्पर्य हैं - हिंदी कैलेंडर की तीसरी तिथि अथवा चंद्रमा का तीसरा चरण।

अक्षय तृतीया हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे चंद्र दिवस को मनाई जाती हैं।
अक्षय तृतीया 2023 में कब मनाई जाएगी ?

अक्षय तृतीया 2023 में शनिवार 22 अप्रैल 2023 को सुबह 7:49 से शुरू होकर रविवार 23 अप्रैल 2023 सुबह 7: 47 तक मनाई जाएगी।
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती हैं?

हिंदू धर्म में कई तीज त्योहार और उत्सव आते है जिन्हे श्रद्धा भाव और धूमधाम से मनाया जाता हैं। ऐसा ही एक तीज त्यौहार अक्षय तृतीया है जिसे  हम लोग प्रत्येक वर्ष बहुत ही हर्षोल्लाष से मनाते है, लेकिन क्या आपको पता है के - "अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?"

पौराणिक कथाओ और प्राचीन मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही अन्नदाता माने जाने वाली माता अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। अक्षय तृतीया के दिन अन्न - धन का दान किया जाता है क्योंकि विभिन्न मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अगर कोई अन्न- धन का दान करता है तो उसके घर पर सुख समृद्धि का वास रहता है और उसके घर पर कभी अन्न- धन की कमी नहीं होती है। 

कुछ पौराणिक कथाओ के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय पात्र (जो पात्र कभी खाली नहीं होता) की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन सतयुग युग की समाप्ति हुई और त्रेता युग का आरंभ हुआ। अक्षय तृतीया के दिन सतयुग में भगवान विष्णु ने मत्स्य, कुर्मू, वाराह और हयग्रीव, नरसिंह का अवतार लिया था। अधर्म पर धर्म की जीत पाने के लिए भी त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम और भगवान श्री राम के रूप में भी अवतार लिया था। 

पुरानी मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु की पूजा उपासना करने वालो को पितरों से आशीर्वाद प्राप्त होता हैं जो बेहद फलदायी होता हैं। इसी कारण से अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की लक्ष्मीनारायण के रूप में पूजा भी की जाती हैं।

एक मान्यता यह भी हैं कि राजा भागीरथ की वर्षो की कठिन तपस्या के बाद शिवजी के आशीर्वाद से माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी, इसलिए माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान  करने से इंसान को अपने पापों से मुक्ति मिलती हैं।
अक्षय तृतीया कौन-कौन से राज्य में मनाई जाती है?

भारतीय परंपरा के अंतर्गत भारत में तीज त्योहारों और मुख्य दिवस को मनाने के पीछे कई मान्यताएं छिपी होती है। परंतु हर राज्य की अपनी अपनी अलग परंपरा तथा संस्कृति रीति - रिवाज होते हैं। इसके अनुसार कई राज्यों में अलग-अलग रिवाजों से त्यौहारों को मनाया जाता हैं तो आइए आज हम आपको अक्षय तृतीया को विभिन्न राज्यों में कैसे मनाया जाता हैं, के बारे मे बताते हैं:

राजस्थान में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

राजस्थान राज्य धार्मिक प्रवृत्ति के अनुसार अधिक श्रद्धा भाव रखने वाला राज्य है यहां पर हर त्योहारों को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। माना जाता हैं कि अक्षय तृतीया के दिन यहां पर किसान वर्ग में अति उत्साह देखा जा सकता हैं, इस दिन किसान लोग सुबह के अंधेरे में खेत पर जाकर शगुनचिड़ी के रूप में पशु पक्षियों को देखते हैं तथा महिलाएं घरों में 7 तरह के धान की पूजा करती है और घरों में लापसी बनाने का रिवाज होता हैं।

उत्तर प्रदेश में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

उत्तर प्रदेश राज्य में अक्षय तृतीया का अत्यधिक महत्व मथुरा और वृंदावन में होता है यहां पर लोग अक्षय तृतीया के दिन वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी के चरणों के दर्शन लाभ लेकर खुश होते हैं, क्योंकि यह दर्शन साल भर में केवल अक्षय तृतीया के दिन ही हो पाते हैं। अन्य राज्यों से भी इस समय यात्री लोग वृंदावन के मंदिरों में घूमने आते हैं तथा गंगा स्नान करके अपने पापों से मुक्ति पाते हैं।

ओडीशा में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

अक्षय तृतीया को ओडिशा में अक्षय प्रत्याशा के नाम से जाना जाता है। अक्षय प्रत्याशा का त्योहार ओडीशा में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां के किसानों में भी अक्षय तृतीया के दिन उत्साह देखा जाता है और उत्साह के साथ किसान अक्षय तृतीया के दिन से ही अपने खेत की जुताई - बुवाई का काम शुरू कर देते हैं । इसके अलावा यहां पर भारी संख्या में लोग जगन्नाथ पुरी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।

गुजरात में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

भारत के गुजरात राज्य में अक्षय तृतीया को सोने के आभूषण खरीदने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है यहां की मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण आभूषण खरीदने पर जीवन में आर्थिक संपन्नता बनी रहती है।

बिहार में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

बिहार राज्य में अक्षय तृतीया का दिन एक नया व्यवसाय शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। यहां पर अपने कार्यालय और घर में पूजा का आयोजन किया जाता हैं तथा भगवान विष्णु की पूजा कर सुख समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।

पश्चिम बंगाल में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

पश्चिम बंगाल राज्य में लोग अक्षय तृतीया के दिन को साल के सबसे शुभ दिनों में से एक विशेष दिन मानते हैं। इस दिन यहां पर लोग सोना - चांदी और भूखंड खरीदना बहुत ही शुभ मानते हैं तथा यहां के लोग इस दिन विशेष पूजा समारोह का आयोजन करते हैं एवं पूजा के अंतर्गत मां लक्ष्मी से सुख- संपन्नता की प्रार्थना करते हैं।

महाराष्ट्र में अक्षय तृतीया का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

महाराष्ट्र राज्य में अक्षय तृतीया को बड़े ही अलग अंदाज में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन औरतें एक समूह में किसी मंदिर में एकत्रित होकर बड़ी ही श्रद्धा के साथ माता गौरी (पार्वती) की पूजा - अर्चना करती हैं तथा पूजा होते ही सबको बधाई देते हुए मिठाई बांटी जाती हैं.साथ ही साथ पूजा के समाप्त होने पर शुभ शगुन के तौर पर एक - दूसरे के माथे पर सिंदूर तथा हाथों में हल्दी लगाकर इस दिन को एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाती हैं।
अक्षय तृतीया पर किसकी पूजा की जाती है?

पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अर्थात अक्षय तृतीया को सारी सृष्टि के संरक्षक भगवान श्री विष्णु  की लक्ष्मीनारायण रूप में तथा उनकी पत्नी माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना की जाती है क्योंकि इस दिन को स्वयं भगवान श्री विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है। अधर्म पर धर्म की जीत पाने के लिए भगवान विष्णु ने अक्षय तृतीया के दिन ही कई अवतार धारण किए थे जिसके कारण अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु द्वारा शासित माना जाता है यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करके मनोकामना पूर्ण की अपेक्षा की जाती हैं।
अक्षय तृतीया के दिन किसका जन्मदिन आता है?

अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर अन्नदाता माने जाने वाली माता अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने तथा अन्न - धन दान करने वाले व्यक्ति का भंडार कभी खाली नहीं होता है।

इसके अलावा पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया (अक्षय तृतीया) को माता रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया था, इसका उल्लेख स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में विस्तृत रूप में दिया गया है अर्थात् इस दिन भारत के कई राज्यों में परशुराम जयंती समारोह का आयोजन कर बड़े ही धूमधाम से यह जयंती भी मनाई जाती हैं।
अक्षय तृतीया पर क्या करना शुभ होता है?

भारतीय परंपराओं के अनुसार वैशाख माह में दान पुण्य करना पशु पक्षियों को चारा पानी देना तथा गरीब व असहाय लोगों की सहायता करना, पितृ तर्पण करना, जप - तप करना, तीर्थ स्नान आदि सत्कार्य करने से पुण्य प्राप्त किया जाता हैं। इस दिन पिंड दान करने से पितरों को मोक्ष प्रदान होता हैं तथा परिवार की सुख - समृद्धि की कामना के साथ उपवास करना भी फलदाई माना जाता है।

इसके अतिरिक्त अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर सोना - चांदी के नए आभूषण खरीदना तथा किसी नए व्यवसाय को शुरू करना, खेतो में जुताई - बुआई आदि कार्य करना भी शुभ माना जाता हैं। इस दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा अर्चना करना भी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में सफल हो सकते हैं।
अक्षय तृतीया की क्या कथा है?

प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव ब्राह्मणों में अधिक श्रद्धा रखने वाला एक वैश्य था उसका नाम था - धर्मदास। धर्मदास का बहुत ही बड़ा परिवार था इसलिए वह अपने परिवार के लालन - पालन के लिए हमेशा व्याकुल रहता था। इस दौरान उसने किसी से अक्षय तृतीया के व्रत की महात्मय को सुना, तत्पश्चात कालांतर में जब यह पर्व आया तो उसने भी गंगा स्नान किया और विधिपूर्वक देवी - देवताओं की पूजा अर्चना की। इस दिन बहुत दान भी किया जैसे - गुड़ - खोपरे के लड्डू, जल से भरी मटकी, चावल,गुड़, सोना - चांदी, गेंहू आदि कई खाने - पहनने की वस्तुएं ब्राह्मणों को दान की।

मध्यमवर्ग के स्तर पर होने के बावजूद तथा अपने स्त्री के बार-बार मना करने तथा कुटुंबजनों के चिंतित रहने और अपने बुढ़ापे के कारण अनेक रोग से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म - कर्म और दान - पुण्य से कभी विमुख नहीं हुआ तो इसी के फल से धर्मदास कुशावती का राजा बना और बहुत ही प्रतापी व धनी व्यक्ति बना। इसी प्रकार इतना धनी होने पर भी वह अपने धर्म के प्रति विचलित नहीं हुआ। अक्षय तृतीया पर श्रद्धा पूर्वक व्रत कर इस कथा को सुनने से हमेशा अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं।


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Comments

Shubham sharma Apr 19, 2023

nice info

Reply from admin Apr 19, 2023

Thank You.

1 Comments

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